रविवार, 25 फ़रवरी 2018

आंसू की दो बूंदें

आँसू की दो बूँदें
                                       
                                         (1)
अंसू ने अपने मित्र से कहा – “दोस्त, सरहद की क्या ज़िंदगी है ? आज उसे दस दिनो से एक रोटी नसीब नहीं हुई है | दो दिनों से पानी की एक घूँट मयस्सर नही हुआ है | माँ को देखे हुए एक वर्ष हो चुके  है | पत्नी और बच्चे फोन करते – करते थक गए हैं, किन्तु सरहद की रखवाली पारिवारिक दायित्व से महत्वपूर्ण होती है | दोस्त, मुझे ऐसा लगता है कि हर व्यक्ति को सरहद पर तैनात सैनिक के जीवन से सीख लेनी चाहिए | सैनिक की जिंदगी, जीवन और मृत्यु के मध्य लटकते हुए व्यक्ति की तरह होती है | उसे नित्य मृत्यु के साक्षात् दर्शन होते हैं | मैंने मृत्यु को बड़ी ही करीब से देखा है | जो मृत्यु का दर्शन कर लेता है, वह निर्भय हो जाता है, क्योंकि दुनिया में मृत्यु से बढ़कर कोई भय नही है और जो भय को परास्त कर देता है वह दुनिया को जीत लेता है | अंसू की बातों को सुनकर अंकित ने कहा –“दोस्त, आज, ही मैं घर से वापस आया हूँ | तुम्हारी माँ गंभीर रूप से बीमार है | उसने मुझसे संदेश भेजा है कि अंसू को एक दिन के वास्ते घर जरूर भेज देना | उसका जीवन पानी का बुलबुला हो चुका है | न जाने कब फूट जाए और जीवन लीला समाप्त हो जाए |
                           अंसू ने अंकित से कहा – दोस्त, सेना की नौकरी में एक दिन का अवकाश नहीं मिलता | सुबह से शाम तक गोलियों और मोटरों, जहाजों की जोरदार आवाज ही सुनाई पड़ती है | मैं तो ऐसी नौकरी से ऊब चुका हूँ | मेजर साहब से अवकाश लेकर घर जाऊंगा |
                           दूसरे दिन सुरक्षामंत्री का आदेश हुआ की अगले दो माहों के लिए किसी सैनिक को अवकाश देय नहीं होगा | अंसू के अरमान पलभर में टूट गए | वह अपने हाथों में बंदूके और पीठ पर गोलियों का बैग रख करके सरहद की ओर प्रस्थान कर दिया | रास्ते के गांवों में वह अपनी माँ को देखना चाहता है | यदि कोई बूढ़ी स्त्री दिखाई देती है, वह सोचता है, कहीं उसकी माँ तो नहीं है ?
वह नदियों, नालों, पहाड़ों और पठारों को पार करता हुआ सरहद पर पहुँचता है और देखता है कि गोलियों की तड़तड़ाहट से पूरी सीमा आक्रांत है | चारों ओर धाँय-धाँय कि आवाज़ सुनाई दे रही है | युद्ध जैसा दृश्य उपस्थित हो गया है |

                                          
                                        (2)
अंसू की माँ अचानक बीमार पड़ गई | वह रात में स्वप्न देखती है कि अंसू सरहद पर शत्रुओं से घिरा हुआ है | वह कभी शत्रुओं को पीछे कर देता है और कभी स्वयं ही पीछे हो जाता है | वह जब शत्रुओं को पीछे ढकेलता है, तो माँ को खुशी होती है, और जब वह हारता हुआ दिखलाई देता है तो माँ के आँखों से आसुओं की दो बूंदे गिर पड़ती है | जैसे ही उसका स्वप्न टूटता है, वह वैसे ही परेशान होने लगती है | उसे वास्तविक ज़िंदगी से भय लगता है | वह काल्पनिक संसार में जीना चाहती है क्योंकि, मनुष्य का स्वभाव है कि जो वस्तु उसे वास्तविक जगत में प्राप्त नही होती है | उसे वह कल्पना लोक में प्राप्त करना चाहता है |
        
             अंसू सरहद पर वीरोचित युद्ध कर रहा है | वहाँ उसे उसकी माँ याद नहीं आती है | क्योंकि वसुंधरा वीरों के द्वारा उपभोग की जाती है | जो सैनिक वसुन्धरा की सुरक्षा कर रहा है, वह माँ की रक्षा से बढ़कर है | अंसू की माँ की बीमारी बढ़ती गई | अब वह दूसरों के सहायता के बगैर चल नहीं पाती | उसकी अंसू के घर वापस आने की आशा निराशा मे परिणत होती जा रही है | जिस प्रकार प्रकाश का अभाव अंधकार होता है , उसी प्रकार आशा का अभाव निराशा होती है | निराश व्यक्ति हर परिस्थिति को निषेधात्मक ढंग से देखता है और समझता है | उसकी नकारात्मक सोच उसे पतन के गड्ढे में गिरा देती है | वह ऐसी काली गुफा में प्रवेश करता है, जिसमे कभी प्रकाश की एक भी किरण का प्रवेश न हुआ हो और घने अंधकार का साम्राज्य हो | आज आँसू की माँ निराशा के घने तमस में डूब गई है | जिसे अंसू के बगैर कौन दूर कर सकता है |
       
               माँ को अंसू के घर वापसी की आशा धूमिल पड़ती जा रही है | अंसू के बिना उसे कीचड़ से कौन निकाल सकता है ? ऐसे अनेक अनुत्तरित प्रश्न उसके अन्तर्मन में समुद्र में ज्वार की तरह उठ रहे हैं और पुन: उसी में विलीन होते जा रहे हैं |
   
                                       


                                        (3)
अंसू की माँ रात्रि में दु:स्वप्न देखती है कि उसका पुत्र आतंकियो से घिरा हुआ है | आतंकवादियों का मकसद बेगुनाह लोगों को सताना अपमानित करना और अंत में जीवन लीला को समाप्त कर देना हैं | सारे विश्व में आतंकवाद और आतंकियो को साम्राज्य हो यह इनका जीवन – दर्शन है | इनका जीवन – दर्शन विध्वंसात्मक और नकारात्मक होते हैं | निर्दोष जनों को पीड़ा देकर स्वयं सुखी रहना उनका जीवन दर्शन होता है |
                  अंसू की दर्दनाक मौत आतंकियों द्वारा कर दी गई है | दैनिक समाचार पत्र ने लिखा – अंसू नायक सैनिक आतंकियों से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गया |” भारत सरकार द्वारा उसका शव उसके गाँव, लाया गया | उसके गाँव में कोहराम मचा हुआ है |
                  अंसू की माँ घर थी कोठरी में उसके आगमन की बात देख रही है उसकी कोठरी में एक दीपक टिमटिमा रहा है | वह बाहर देखती है की गाँव में शोर सुनाई दे रहा है | उसे किसी व्यक्ति के मुंह से अंसू का नाम सुनाई दिया | वह कह रहा है – “अंसू  अपनी माँ का एकलौता संतान था |” वह महावीर था | सरहद पर दुश्मनों से युद्ध करता हुआ वो वीरगति को प्राप्त हो गया | अंसू का नाम सुनते ही उसकी माँ चौककर के चारपायी पर बैठ जाती है | उसे चारों ओर घुप अँधेरा दिखलाई देता है | उसकी आँखों के सामने एक काला परदा सा दिखाई देता है | वह अचानक काँपने लगती है | किसी व्यक्ति ने उसके कान में कहा – “दादी ! तुम्हारा बेटा अंसू इस संसार में नही रहा |” माँ ने कहा – “नहीं, ऐसा नहीं हो सकता | हमारा बेटा अंसू नही रहा | तुम झूठ बोलते हो | मैं उसे एक बार देखना चाहती हूँ | मैं उसे देखे बिना मर नहीं सकती हूँ | वह उसे चारों दिशाओं में खोजती है | किन्तु वह दिखाई नही देता | वह कहती है कि हे राम ! अंसू को बिना देखे उसकी आत्मा कई जन्मों तक भटकती रहेगी |
                     सैनिकों द्वारा अंसू का शव उसकी माँ के समक्ष लाया जाता है | वह उसके शव को बड़े ध्यान से देखती है , उस पर विलाप करती है और आंसुओं की दो बूंदे उसके शव पर टपक पड़ती है |

                                      समाप्त