अन्तरात्मा की पुकार ''और कवि
डॉ सुरेश कुमार शुक्ला
प्रवक्ता संस्कृत
राजकीय विद्यालय झारखंड
"नरत्वं दुर्लभं लोके, विद्या तत्र सुदुर्लभा। शीलं च दुर्लभं तत्र, विनयस्तत्र सुदुर्लभः॥" हिन्दी साहित्य परम्परा में सतत् तत्पर रहते वाले भावभीनी प्रतिभा से विभूषित सहृदयों के हृदय को हिलोर देने वाले भाषा विलासिनी भुजंगम् आचार्य पंडित श्री राम बरन त्रिपाठी द्वारा रचित मुक्तक काव्य "अंतरात्मा की पुकार" को पाठक जितनी बार पढ़ते हैं उतना ही आनंद बढ़ता चला जाता है विगत वर्षों में यद्यपि बहुत सारे गद्य काव्य, कथा संग्रह,पद्य काव्य, चम्पू काव्य आदि विधाएं प्रकाशित हुई इस तरह का प्रत्येक छंद अपने आप में पूर्ण आनंद प्रदान करने वाला काव्य तैयार करने की कला तो केवल पंडित जी में ही दिखाई देती है। इनकी लेखनी जिस भी विधा में चल जाती है वहां अमित छाप छोड़ जाती है।
आधुनिक हिंदी साहित्य के इतिहास में एक और कड़ी को मुखरित और पल्लवित कर त्रिपाठी जी का एक - एक मुक्तक सहद में डूबा हुआ प्रतीत होता है।
श्री त्रिपाठी जी की लेखनी में अद्भुत क्षमता है जो वाणी से समेटना उनके साथ अन्याय होगा लेखन लेखक के अन्तर्जगत का प्रतिबिम्ब होता है। प्रत्येक लेखकके लेखन में उसके व्यक्तित्व की झलक दिखता है। यही कारण है कि त्रिपाठी जी के मुक्तक काव्य में सोद्देश्य उपादेयता नैतिकता, देश प्रेम, राजनीति, प्रपंच आदि का सांगोपांग चित्रण करने में जरा भी कोर - कसर नहीं छोड़ा है।
स्वनामधन्य, विप्रवंश, शिरोमणि श्री त्रिपाठी जी के विषय में कुछ कह पाना अपनी एक दृष्टता ही होगी , परन्तु हृदय में जो उफान है वह रुक भी नहीं रहा है। किसी भी कार्य को करने का कुछ न कुछ प्रयोजन अवश्य ही होता है -
“प्रयोजनं विना तु मन्दोऽपि न प्रवर्तते |”
इसलिए कहा भी गया है कि- कस्यचिदपि कार्यस्य कर्मणो वापि कस्याचित्। यावत्प्रयोजनं नोक्तं तावत्केन गृहते।।
सात्विक श्रोत से आयी हुई सम्पत्तियां हमेशा सुखकारी होती है पाप कर्मों से आयी हुई सम्पत्तियां सदा कलुषता को ही उत्पन्न करती है त्रिपाठी जी का सात्विक विचार निश्चित ही रूप से उनके काव्य में झलक रहा है। वास्तव में यह हिन्दी साहित्यकार हिन्दी साहित्य समाज में व्याप्त सामाजिक जटिलता को दूर करने में, कठिनता को सरल करने में, आर्थिक , राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, जातिवाद, राष्ट्रवाद , भ्रष्टाचार आदि जैसी विसंगतियों को दूर करने के उद्देश्य से अपने इस प्रयास के माध्यम से मुक्तक काव्य की रचना करने में सार्थक सिद्ध हुए हैं।
डॉ सुरेश कुमार शुक्ला
प्रवक्ता संस्कृत
राजकीय विद्यालय झारखंड
"नरत्वं दुर्लभं लोके, विद्या तत्र सुदुर्लभा। शीलं च दुर्लभं तत्र, विनयस्तत्र सुदुर्लभः॥" हिन्दी साहित्य परम्परा में सतत् तत्पर रहते वाले भावभीनी प्रतिभा से विभूषित सहृदयों के हृदय को हिलोर देने वाले भाषा विलासिनी भुजंगम् आचार्य पंडित श्री राम बरन त्रिपाठी द्वारा रचित मुक्तक काव्य "अंतरात्मा की पुकार" को पाठक जितनी बार पढ़ते हैं उतना ही आनंद बढ़ता चला जाता है विगत वर्षों में यद्यपि बहुत सारे गद्य काव्य, कथा संग्रह,पद्य काव्य, चम्पू काव्य आदि विधाएं प्रकाशित हुई इस तरह का प्रत्येक छंद अपने आप में पूर्ण आनंद प्रदान करने वाला काव्य तैयार करने की कला तो केवल पंडित जी में ही दिखाई देती है। इनकी लेखनी जिस भी विधा में चल जाती है वहां अमित छाप छोड़ जाती है।
आधुनिक हिंदी साहित्य के इतिहास में एक और कड़ी को मुखरित और पल्लवित कर त्रिपाठी जी का एक - एक मुक्तक सहद में डूबा हुआ प्रतीत होता है।
श्री त्रिपाठी जी की लेखनी में अद्भुत क्षमता है जो वाणी से समेटना उनके साथ अन्याय होगा लेखन लेखक के अन्तर्जगत का प्रतिबिम्ब होता है। प्रत्येक लेखकके लेखन में उसके व्यक्तित्व की झलक दिखता है। यही कारण है कि त्रिपाठी जी के मुक्तक काव्य में सोद्देश्य उपादेयता नैतिकता, देश प्रेम, राजनीति, प्रपंच आदि का सांगोपांग चित्रण करने में जरा भी कोर - कसर नहीं छोड़ा है।
स्वनामधन्य, विप्रवंश, शिरोमणि श्री त्रिपाठी जी के विषय में कुछ कह पाना अपनी एक दृष्टता ही होगी , परन्तु हृदय में जो उफान है वह रुक भी नहीं रहा है। किसी भी कार्य को करने का कुछ न कुछ प्रयोजन अवश्य ही होता है -
“प्रयोजनं विना तु मन्दोऽपि न प्रवर्तते |”
इसलिए कहा भी गया है कि- कस्यचिदपि कार्यस्य कर्मणो वापि कस्याचित्। यावत्प्रयोजनं नोक्तं तावत्केन गृहते।।
सात्विक श्रोत से आयी हुई सम्पत्तियां हमेशा सुखकारी होती है पाप कर्मों से आयी हुई सम्पत्तियां सदा कलुषता को ही उत्पन्न करती है त्रिपाठी जी का सात्विक विचार निश्चित ही रूप से उनके काव्य में झलक रहा है। वास्तव में यह हिन्दी साहित्यकार हिन्दी साहित्य समाज में व्याप्त सामाजिक जटिलता को दूर करने में, कठिनता को सरल करने में, आर्थिक , राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, जातिवाद, राष्ट्रवाद , भ्रष्टाचार आदि जैसी विसंगतियों को दूर करने के उद्देश्य से अपने इस प्रयास के माध्यम से मुक्तक काव्य की रचना करने में सार्थक सिद्ध हुए हैं।