शुक्रवार, 2 मार्च 2018

मणि मंदिर साहित्य संस्थान इस माह श्री बृजनाथ तिवारी का उपन्यास 'परिवर्तन' प्रकाशित करने जा रहा है

उपन्यास *      

                          
                         
                           
                                बी॰ एन॰ त्रिपाठी

रविवार, 25 फ़रवरी 2018

बूढ़ी दादी

बूढ़ी  दादी*
                               (13)

              बूढ़ी दादी का नाम जुबान पर आते ही ऐसी बुढिया का चित्र आँखों के सामने खड़ा हो जाता है जो काया से अति दुर्बल , आँखों में अदृश्यता , बालो में सफेदी, गालों में पोपला मुंह में दंतविहीनता और चमड़ी पर झुर्रियांवाली कोई स्त्री होगी | प्राचीन समय की बात है | एक गाँव में बुढ़िया रहा करती थी | जिसे लोग ‘बूढ़ी दादी’ के नाम से पुकारते थे | उसके परिवार में बेटे – बेटियाँ , नाती – पोतियाँ , युवक – युवतियाँ थी | घर के छोटे बच्चे दादी के ईद – गिर्द मँडराते थे | एक बच्चा दादी से कहता है – “ बूढ़ी दादी , तू क्यों नहीं बोलती हो ? तू सदैव क्या सोचती रहती हो ? क्या तुझे कोई बीमारी ने पकड़ रखा है ? बच्चे के प्रश्न को सुनकर के दादी कुछ बोलना चाहती है , किन्तु यह सोचकर के चुप रह जाती है कि उसका छोटा बेटा कही सुन लिया तो उसकी खैर नहीं | अत: बूढ़ी दादी केवल कुछ नही ‘बच्चा’ कहकर के प्रशांत हो जाती और न जाने किस संसार में खो जाती |
        
          बूढ़ी दादी का छोटा बेटा आबकारी विभाग में बड़ा बाबू के पद पर कार्यरत है | वह प्रकृति से विगड़ैल तुनुकमिज़ाज़ी और अहंकारी है | वह मनमौजी स्वभाव के कारण किसी भी व्यक्ति की बातों पर तवज्जो नही देती है | उसे जो बात अच्छी लगती है , उसे किसी भी कीमत पर पूरा कर लेता है | वह बूढ़ी दादी की हर बात को नज़रअंदाज कर देता है | उसकी कत्तई देखभाल नही करता है | उसने बूढ़ी दादी का मज़ाक उठाते हुए कहा “ अरे , बूढ़ी दादी , तू अब क्यों ज़िंदा हों ? भगवान से दुवा करो कि वह तुम्हें जल्द से जल्द इस दुनिया से बुला ले | “बूढ़ी दादी ने उत्तर दिया – “बेटा , जीना – मरना मनुष्य के हाथों में नहीं है | मनुष्य ईश्वर के मुख का ग्रास होता है, जिसका आधा भाग उसके मुँह के भीतर और आधा भाग बाहर होता है | वह संसार को दिव्य नेत्रों से देखता है किन्तु संसारी प्राणी अपने चर्म चक्षुओं से उसे देख नही पाते है | यह ही संसार का अद्भुत रहस्य है | बड़े बाबू के बुरे स्वभाव से सारे कर्मचारी निहायत ऊब चुके हैं |
        
          एक दिन की घटना है | बड़े बाबू ने अपने ‘बॉस’ की प्रशंसा में कुछ अनमोल मोतियाँ जड़ दिए | उन्होने अपने ‘बॉस’ से कहा – “सर , जिसदिन आप का चरण कमल मेरे कार्यालय में पड़ा – “ उस दिन से आवकारी विभाग की आमदनी बढ़ गई है | आप जैसा लोकप्रिय ‘बॉस’ अभी तक इस विभाग में
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न आया और न ही भविष्य में आएगा | आप जैसा प्रशासनिक अधिकारी मैंने अपने जीवन में न देखा और न सुना ही | मेरा कार्यालय आप जैसे ‘बॉस’ पाकर के कृतार्थ हो गया है | ‘बॉस’ ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया – “ बड़े बाबू, मै जिस विभाग में जाता हूँ , वहाँ भी आमदनी दोगुनी नही , चौगुनी बढ़ जाती है | अभी तक मेरा इस विभाग में आए हुए दस दिन ही हुए है , एक वर्ष पूर्ण होते ही कार्यालय का कायाकल्प कर दूंगा |
          बड़े बाबू ने अपने ‘बॉस’ को खुश करने हुते अपने आवास पर एक शानदार पार्टी का आयोजन किया है | उन्होने ‘बॉस’ से कहा – “ ‘बॉस’ , मैंने अपने आवास पर एक शानदार पार्टी का आयोजन किया है | जिसमें आप सपरिवार सादर आमंत्रित है | ‘बॉस’ ने मौन स्वीकृति प्रदान कर दी | बड़े बाबू का बँगला विद्युत बल्बों की रंग बिरंगी रोशनी से नहाया हुआ है | मेहमानों हेतु बी॰ आई॰ पी॰ कुर्सियाँ सुशोभित हो रही है | नौकर – नौकरानियाँ इधर – उधर दौड़ते हुए दिखाई दे रहे है | विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाए गए है | ‘बॉस’ को कोई बात बुरी न लगे, इस बात का पूरा ख्याल रखा गया है | ‘बास’ के मनोरंजन हेतु नवयौवना नर्तकियों को बुलाया गया है | मधुर वाद्ययंत्रों से पूरा परिसर संगीतमय और आह्लादमय हो गया है |
       
          बड़े बाबू ने बूढ़ी दादी से कहा – दादी , ध्यानपूर्वक सुनो | आज मेरे बंगले पर एक शानदार पार्टी का आयोजन किया गया है | जिसमें नगर के सम्भ्रात जन आमंत्रित किए गए है | तुम आज राजू की मम्मी की साड़ी पहनना | और सुनो , अपने कमरे से बाहर नहीं निकालना | ‘बॉस’ के आगमन पर अपना पोपला मुंह मत दिखाना | यदि ‘बॉस’ मेरे घर से नाराज होकर चले गए तो , तुम्हारी खैर नहीं होगी | यदि बॉस प्रसन्न होकर जाएंगे तो , मेरा प्रमोशन हो जाएगा | मै बड़ा बाबू को जगह ‘बड़ा साहब’ बन जाऊंगा |
        
          ‘बॉस’ के आगमन पर नवयुवतियाँ उनकी आरती प्रज्वलित दीपों से उतारती हैं और मांगलिक गीत गाती हैं | नवयुवतियाँ आकर्षक नृत्य के द्वारा ‘बास’ का स्वागत करती है | विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन ‘बॉस’ के सामने परोसे गए हैं |
        
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            ‘बॉस’ ठहाका लगाते हुए व्यंजनो का आस्वाद ले रहे हैं | चारों दिशाओं में खुशनुमा माहोल है | बूढ़ी दादी अपने तंग कमरे में खामोश पड़ी हुई है | उसे इस बात की आशंका है कि कही उसके कारण बड़े बाबू का प्रमोशन न हो पाए | अत: चुपचाप रहना ही अच्छा समझा | बड़े बाबू का बंगला किसी महाराजा के भव्य महल को भी मात कर रहा था | आधी रात व्यतीत हो चुकी है किन्तु बूढ़ी दादी के मुंह में एक दाना मयस्सर नहीं हुआ | वह व्यंजनों के स्वाद में खो जाती है किन्तु भूख की आग स्वाद से और प्रज्वलित हो जाती है | सारी दबी हुई इच्छाएँ उभरकर स्वाद इंद्रिय पर केन्द्रीभूत हो जाती है | आज बूढ़ी दादी के लिए सारा संसार व्यर्थ नज़र आ रहा है | उसे बड़े बाबू पर गुस्सा आता है कि तू ने बूढ़ी दादी को ज़िंदा क्यों छोड़ दिया ? उसे मार क्यों नही डाला ? हे भगवान ! अब जिंदा क्यों रखे हो | अब और अपमान मुझसे सहन नहीं होता | हे भगवान ! यदि तू दीनदयाल है तो, मुझे अपने पास बुला ले | यह कहकर के बूढ़ी दादी अपनी आँखें बंद कर लेती है |
       
          सुप्रभात का समय | सूर्यदेव पूर्वी दिशा में अपनी सारथि के संग विराजमान थे | विद्युत बल्बों की रोशनी मंद पड़ रही थी | बड़े बाबू निद्रामग्न थे | उनके छोटे बेटे ने आवाज दी “पिता जी , बूढ़ी दादी की आंखे बंद हो गई हैं | वे बोल भी नहीं रही हैं | बड़े बाबू घबडाहट में उठे और बूढ़ी दादी के पास गए और बोले – “दादी ..... दादी,  बूढ़ी दादी को क्या हो गया ? उन्होने दादी की नाड़ी देखा , तो हतप्रभ हो गए | हे भगवान ! तूने क्या कर दिया | दादी ने मेरे बड़े साहब पद पर प्रमोशन नही देखी और प्रभु को प्यारी हो गई | ग्रामीण लोगो ने कहा – “ बूढ़ी दादी , बेचारी भूख से तड़पकर मर गई |
       
          बड़े बाबू ने बूढ़ी दादी की अन्येष्टि क्रिया किया | उन्होंने दादी के त्रयोदशाह पर शानदार पार्टी का आयोजन किया | दस हजार लोगो ने स्वादिष्ट व्यञ्जन ग्रहण किए | मेहमानों ने बड़े बाबू की प्रशंसा के गीत गाए और बूढ़ी दादी को श्रद्धाञ्जलि अर्पित किए , किन्तु बूढ़ी दादी की आत्मा स्वादिष्ट व्यञ्जनों की मृगतृष्णा में आजीवन भटकती रही |

                                        समाप्त

गांव की चौरा देवी

            गाँव की चौरा देवी
                                 (4)

नवरात्र का समय | गाँव में माँ चौरा देवी के मधुर गीत स्त्रियों के द्वारा गाए जा रहे हैं | हमारे देश में देवी – देवताओं को प्रसन्न करने हेतु उनके मंदिर बनाए जाते हैं, जहाँ पर के बच्चे, युवक स्त्री-पुरुष इकट्ठा होकर देवी-देवताओं के गुनगान किया करते हैं |
                            
                           रामपुर गाँव के दक्षिणी दिशा में चौरा देवी का मंदिर है | चाहे नवरात्र हो, शादी – विवाह आदि शुभ कार्यों में माँ चौरा देवी की पूजा – अर्चन अनिवार्य होती है | गाँव के लोग अपनी मन की मनौतियाँ की पूर्ति हेतु माँ चौरा देवी की आराधना – प्रार्थना – पूजा – अर्चन किया करते हैं | यदि किसी की बिटिया की शादी में अवरोध हो, गरीबी के कारण बहुत सी लड़कियाँ कँवारी रह जाती हैं | माँ चौरा देवी की आराधना – पूजा –अर्चन से सब की कामना अवश्य पूरी हो जाती है |
                             
                           एक बार रामपुर गाँव में भयंकर अकाल पड़ा | वर्षा ऋतु में एक भी बूँद आसमान से नहीं टपकी | बारिस न होने से वनस्पतियाँ, फसलें सूखने के कगार पर पहुँच गई | पीने का पानी दुर्लभ हो गया | बारिस न होने से पशु – पक्षियाँ भी मरने लगी | गाँव में पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है |
                           एक दिन गाँव के मुखिया ने गाँववालों को अपने पास बुलाया और कहा – “ भाइयों, बहनों, माताओं, इस वर्ष महासंकट का समय है ’’| इस महाकाल से उबरने हेतु आप सब अपना विचार व्यक्त कीजिए, जिससे इस महामारी से मुक्ति मिल सके | गाँव के एक सबसे बुजुर्ग व्यक्ति ने कहा – अरे मुखिया जी, काहे को चिंता करते हो ? जब तक चौरा माई हैं, तब तक हमारे गाँव का कोई भी बालबॉका नहीं कर सकता | चाहे बाढ़ हो, सूखा हो, महाकाल हो, हमारी चौरा माँ रक्षा करती आ रही हैं, और आज भी अवश्य करेंगी, इसमें संदेह का अवकाश नहीं है | गाँव के लोगों ने हाथों को उठाकर कहा “राघव चाचा बिलकुल ठीक कह रहे हैं ---- ठीक कह रहें हैं | इस प्रकार की कई लोगों की समवेत ध्वनियाँ सुनाई देनी लगीं | गाँव वालों ने निर्णय किया कि कल सोमवार को चौरा देवी के मंदिर पर इकठ्ठा होना है और उसकी साफ – सफाई करना होगा | गाँववालों ने अपनी सहमति दे दी |
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                       प्रात:काल का समय | ब्रह्मबेला का आगमन हो चुका है | ग्रामीण जन स्नान – ध्यान – पूजा – पाठ आदि कार्यों में तल्लीन दिखाई दे रहे हैं | चौरा देवी के मंदिर में घण्टा – घड़ियाल की प्रचण्ड – ध्वनियाँ अनवरत सुनाई पड़ रही है | ग्रामीण स्त्रियों के द्वारा देवीगीत गाए जा रहे हैं | मंदिर का पूरा परिसर मंगलमय हो चुका है | चारों दिशाओं में पंडित जनों द्वारा वैदिक मंत्रों कंठ मधुर और विशुद्ध उच्चारण हो रहा है | मंदिर का परिसर विधुत बल्बों की रोशनी में नहाया हुआ है |
                      
                       मंदिर के पुजारी ने चौरा देवी की स्तुतियाँ का समवेत गायन शुरू कर दिया है | चौरा देवी अचानक प्रकट हो गई | उन्होंने पुजारी से कहा– “मैं गाँव वालों पर अप्रसन्न हूँ, पुजारी ने पूछा क्यों माई ? उन्होंने उत्तर दिया – विगत पाँच वर्षों में मेरे चौरा पर कोई मांगलिक सुकृत्य संपन्न नही हुए हैं | जिसका दुष्परिणाम तुम्हारे समक्ष दिखाई दे रहा है | यदि अकाल – महामारी आदि बीमारियों से बचना हो तो, मेरे चौरा पर प्रतिवर्ष मांगलिक कार्यों का संपादन अवश्य होना चाहिए | विशेषकर शारदीय नवरात्र में पूजन – अर्चन – अवश्य करें और करवाएँ | चौरा देवी के मुख से यह दिव्य वाणी सुनकर के पुजारी ने मौन स्वीकृति प्रदान कर दिया | चौरा देवी यह कह करके अन्तर्धान हो गई |
               
                        पुजारी ने गाँववालों से चौरा देवी की दैवीवाणी को सुनाया | गाँववालों ने स्वीकृति प्रदान कर दी | पुजारी की विनम्र प्रार्थना पर चौरादेवी का पुन: प्राकट्य हुआ | उन्होंने दिव्यवाणी में कहा – “आप लोगों की मेरी आराधना – पूजा – अर्चन आदि से मैं अति प्रसन्न हूँ | अब इस गाँव में किसी भी प्राणी की अकाल मृत्यु नहीं होगी | कोई कन्या कुँवारी नहीं रहेंगी | सर्दी – गर्मी बारिस की ऋतुएँ समय पर आती रहेंगी | गाँव में अन्न – जल का अभाव कदापि नहीं होगा | ग्रामीण जनों में खुशहाली रहेगी | ऐसा वचन देकर चौरादेवी अन्तर्धान हो गई | उनके अन्तर्धान होने पर ग्रामीणजनों में खुशियों की लहर दौड़ गई | बारिस का आगमन सन्निकट है | आकाश मण्डल श्यामवर्ण वाले जलद से आच्छादित हो उठा है | वनों में मयूर मण्डली ने अपनी मधुर ध्वनियों से जलागमन की सूचना दे दिया है | मेढकों की टर्र – टर्र की कर्कश ध्वनियों से सरोवर गुंजायमान हो चुका है | देखते – देखते ही बारिस शुरू हो गई | नदी – नद, सरोवरों में जल भर गया है | ग्रामीण जन अपने खेतों में धान की बेरन डालना शुरू कर दिया है | स्त्रियाँ गृहस्थी के सामानो को चार महीनों के लिए इकट्ठा करना शुरू कर दिया है | ग्रामीण बच्चे नदियों सरोवरों में क्रीड़ाएँ करना आरंभ कर दिए हैं | पगडंडियों पर पानी का जमाव हो गया हैं | राजमार्गों
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पर यदा-कदा वाहन भागते हुए दिखाई दे रहे हैं | गर्मी की ऊमस समाप्त होने लगी है | ठण्डी हवाएँ शनै: शनै: बहने
                               
लगी हैं | गांवों में अखाड़े खुलने लगे हैं | ग्रामीणजन अखाड़ों में कसरत और कुश्ती का अभ्यास कर रहे हैं |
                   माँ चौरादेवी की कृपा चतुर्दिक बरसने लगी है | गाँव की स्त्रियाँ आपस में कानाफूसी करने लगी हैं | वे कहती हैं कि सुना नहीं, रामू की माई, चौरादेवी ने खुश होकर गाँव पर – धन – वर्षा कर दिया है | निरहू की कुँवारी बिटिया की शादी जो, गरीबी के कारण रूकी थी, किसी अमीर लड़के के साथ निश्चित हो चुकी है | देखो, बहन जी, चौरामाई की दैवीशक्ति | बिना उनकी कृपा से संसार में कुछ प्राप्त नहीं हो सकता है | उनकी कृपा की वर्षा होने पर सबकुछ अनायास ही प्राप्त हो जाते हैं | ऐसी माँ चौरादेवी की बारंबार जयकारा लगाना चाहिए | वे भी दयालु हैं | वे हम लोगों की मनोकामना पूरा करेंगी | इसमें कुछ भी संदेह का अवकाश नहीं हैं |



             

सिन्दूर की एक डिबिया

सिन्दूर की एक डिबिया
                              (23)
         जून का माह | सूर्यनारायण रश्मियों के द्वारा सम्पूर्ण भूलोक को संतप्त कर रहे है | प्राणलेवा गर्मी से भयभीत होकर प्राणी जगत किसी छाया की शरण में जीवन निर्वहन कर रहे हैं | विन्ध्य पर्वत माला के इर्द गिर्द आदिवासी जनों की एक बस्ती है | इनका रहन – सहन निम्न स्तर का है | घटिया भोजन , मलीन वस्त्र, टूटी फूटी झोपड़ियाँ एवम् निहायत अश्लील गाली – गलौज में इनका जीवन व्यतीत होता है | इसी वस्ती में एक आदिवासी निवास करता है , जिसका नाम  चैतू है | चैत्र मास में जन्म लेने के कारण इसका नाम चैतू पड़ गया है | इसकी पत्नी का नाम दु:खिया और बेटी का नाम “गौरी” है | लोग उसे गौरी के नाम से पुकारते हैं | जैसा उसका नाम , उसी के अनुरूप उसका रूप लावण्य | चंद्रमा की उपमा देना उसके रूप – सौन्दर्य का अनादर करता है | वह निष्कलंक है , जबकि चाँद कलंकित है उसके मुखमण्डल पर तपे हुए स्वर्ण की लालिमा एवम् तपस्वी जैसा तेज़ है | उसके अधरों पर अहर्निशि क्रीडा करती हुई मधुर मुस्कान विराजमान रहती है | वह विकलांग है , किन्तु विकलांगता उसके रूप माधुर्य में किंचित् अभाव पैदा नहीं करती है | क्योंकि गुणों के समूह में एक दुर्गुण वैसे ही छिप जाता है , जैसे , चाँद में एक एक धब्बा | गौरी का पिता उससे भिक्षा मँगवाता है | शायद इसलिए कि उसकी विकलांगता पर करूणाद्र होकर एवम्  सौन्दर्य पर मुग्ध होकर राहगीर एक दो पैसे अवश्य दे देगा | वह भोपाल रेलवे क्रासिंग पर बैठकर राहगीरों से एक दो पैसे मांगती है | गौरी के रूप सौन्दर्य पर मुग्ध होकर एक तरूण ने उससे प्रश्न किया – “ सुंदरी , क्या वह भी तुम्हारे साथ बैठकर भिक्षा मांग सकता है ? तरूण की बातों को सुनकर उसने जवाब दिया – “ नहीं, तरूण नहीं | तुम राजकुमार हो , तुम कुलीन खानदान के सुपुत्र हो | भिक्षावृति तुम्हारे लिए उपयुक्त नहीं है | यह भिखारियों, निर्धनों , विकलांगों, अनाथों के लिए बनायी गई है | तुम नवयुवक हो, सुंदर हो, तुम्हारा रूप – लावण्य संभ्रांत परिवार का परिचायक है | यह अधम काल तुम्हारे लिए अशोभनीय है | तरूण ने गौरी से पुन: पुन: आग्रह किया , उसने बेबश होकर मौन स्वीकृति दे दी | तरूण गौरी के पास बैठकर राहगीरों से एक दो पैसे मांगता है | पथिक जनों से उसे जो पैसे प्राप्त होते है, उसे गौरी को देता है | यह क्रम कई दिनों तक चलता रहा | एक दिन की घटना ने गौरी को स्तब्ध कर दिया | तरूण ने गौरी से शादी का प्रस्ताव कर दिया | उसने तरूण से कहा – “ तुम एक राजपुत्र और मैं एक साधारण भिखारी की पुत्री |  तुम्हारी समाज में मान – मर्यादा बढ़ी – चढ़ी है और मेरी कोई इज्जत नही है | तुम्हारी शादी और मेरे साथ | नहीं , राजपुत्र , नहीं | कदापि नहीं |
                       
                                        (24)
               गौरी की शादी उसके बाप ने किसी दिव्यांग के साथ सुनिश्चित कर दिया है | गौरी दिव्यांग के बारे में स्वप्न देखती है – “ वह कितना सुन्दर होगा | उसके प्रत्येक अंग दिव्य होंगे | तभी तो लोग उसे दिव्यांग कहते हैं | वह भावी पति की परिकल्पना में खोई रहती है | वह अब भिक्षा भि नहीं माँगती है |
               राजकुमार की शादी किसी अप्रतिम सुन्दरी राजकुमारी से सुनिश्चित हो चुकी है | राजमहल विद्युत बल्बों की रोशनी में नहाया हुआ है | राजकुमारी सर्वांग सुन्दरी है ब्रह्मा के द्वारा रची गई सृष्टि का अद्वितीय कृति है | ब्रह्मा जिसके रूप माधुरी पर स्वयं मुग्ध है |

                राजदूतों द्वारा राजकुमार को विदित हुआ कि महाराजा ने उसकी शादी राजकुमारी प्रिया के संग सुनिश्चित कर दिया है | राजदूतों से शादी की बात सुनकर के राजकुमार के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई | वह बेसुध होकर गिर पड़ा | उसने अन्तर्मन में विचार किया – “ गौरी जैसी सुन्दरी लड़की त्रिलोक में अभी तक पैदा ही नहीं हुई है | गौरी के अनिंद्य सौन्दर्य की उपमा राजकुमारी से करना आत्म प्रवंचना है | गौरी रूप मौधुर्य की साक्षात् देवी है | यद्यपि गौरी विकलांग है , किन्तु कहा गया है कि प्रेमी जनों को अपने प्रियजनों में किंचित् भी दुर्गुण दिखलाई नहीं देता है | राजकुमार बड़ी तीव्रता से गौरी के पास जाता हैं और उससे प्रणय-निवेदन करता है | गौरी मौन स्वीकृति दे देती है | महाराजा को जब यह समाचार मिला तो , उन्होने राजदूतों से राजकुमार को बुलवाया और समझाने का प्रयास किया | राजा ने राजकुमार से कहा – “ तुम एक राजपुत्र हो | एक विकलांग लड़की के संग शादी करना राज घराने का अपमान है | मेरा खानदान कलंकित होगा | तरूण राजकुमार ने उत्तर दिया – “महाराज  , आत्मज्ञान और आत्मसुख से बढ़कर के मान – मर्यादा नहीं होती है | मनुष्य की मान – मर्यादा क्षण भंगुर है और आत्मज्ञान व आत्मसुख शाश्वत हैं | अत: ज्ञानीजन क्षणिक मान – मर्यादा हेतु आत्मसुख का परित्याग नहीं करते हैं | महाराजा ने मौन स्वीकृति प्रदान कर दी |

                 तत्पश्चात् राजकुमार की शादी का मुहूर्त सुनिश्चित हो गया | जब दिव्यांग पुरूष को पता चला कि गौरी की शादी राजकुमार के संग सुनिश्चित हो चुकी है , तब उसके अन्तर्मन में बड़ी आत्मग्लानि उत्पन्न हुई , किन्तु विधाता का विधान बड़ा ही कठोर होता है | यह जानकर उसने दो पैसे से “सिंदूर की एक डिबिया” लेकर राजमहल जा पहुंचा और गौरी के हाथों में देते हुए कहा –“ गौरी ,
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तुम्हारा दिव्यांग पति तुम्हारे समक्ष खड़ा है | इसे स्वीकार करो | मैं निर्धन , असहाय और असमर्थ हूँ | इसीलिए तुम ने मेरे संग शादी से इनकार करके एक धनवान के साथ रहना बेहतर समझा ठीक है | ईश्वर की इच्छा सर्वोपरि होती है | मनुष्य उसके सामने झुक जाता है | गौरी तुम सौभाग्यवती हुई और तुम्हारा स्वप्नों का दिव्यांग कुँवारा | दिव्यांग की बातों को सुनकर गौरी ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया – “ दिव्यांग ! राजकुमार तरूण ने मुझे पहले प्रेम किया | अत: उससे मैंने शादी करना कर्तव्य समझा | दिव्यांग तुम्हारे द्वारा प्रदान की गई पवित्र “सिंदूर की डिबिया” को सदैव अपने पास सहेज कर रखूंगी और जीवनपर्यंत इसकी सुरक्षा करूंगी | क्योंकि यह मेरा सुहाग है | यह कहकर के गौरी चुप हो गई |

                                           


                                           समाप्त

आंसू की दो बूंदें

आँसू की दो बूँदें
                                       
                                         (1)
अंसू ने अपने मित्र से कहा – “दोस्त, सरहद की क्या ज़िंदगी है ? आज उसे दस दिनो से एक रोटी नसीब नहीं हुई है | दो दिनों से पानी की एक घूँट मयस्सर नही हुआ है | माँ को देखे हुए एक वर्ष हो चुके  है | पत्नी और बच्चे फोन करते – करते थक गए हैं, किन्तु सरहद की रखवाली पारिवारिक दायित्व से महत्वपूर्ण होती है | दोस्त, मुझे ऐसा लगता है कि हर व्यक्ति को सरहद पर तैनात सैनिक के जीवन से सीख लेनी चाहिए | सैनिक की जिंदगी, जीवन और मृत्यु के मध्य लटकते हुए व्यक्ति की तरह होती है | उसे नित्य मृत्यु के साक्षात् दर्शन होते हैं | मैंने मृत्यु को बड़ी ही करीब से देखा है | जो मृत्यु का दर्शन कर लेता है, वह निर्भय हो जाता है, क्योंकि दुनिया में मृत्यु से बढ़कर कोई भय नही है और जो भय को परास्त कर देता है वह दुनिया को जीत लेता है | अंसू की बातों को सुनकर अंकित ने कहा –“दोस्त, आज, ही मैं घर से वापस आया हूँ | तुम्हारी माँ गंभीर रूप से बीमार है | उसने मुझसे संदेश भेजा है कि अंसू को एक दिन के वास्ते घर जरूर भेज देना | उसका जीवन पानी का बुलबुला हो चुका है | न जाने कब फूट जाए और जीवन लीला समाप्त हो जाए |
                           अंसू ने अंकित से कहा – दोस्त, सेना की नौकरी में एक दिन का अवकाश नहीं मिलता | सुबह से शाम तक गोलियों और मोटरों, जहाजों की जोरदार आवाज ही सुनाई पड़ती है | मैं तो ऐसी नौकरी से ऊब चुका हूँ | मेजर साहब से अवकाश लेकर घर जाऊंगा |
                           दूसरे दिन सुरक्षामंत्री का आदेश हुआ की अगले दो माहों के लिए किसी सैनिक को अवकाश देय नहीं होगा | अंसू के अरमान पलभर में टूट गए | वह अपने हाथों में बंदूके और पीठ पर गोलियों का बैग रख करके सरहद की ओर प्रस्थान कर दिया | रास्ते के गांवों में वह अपनी माँ को देखना चाहता है | यदि कोई बूढ़ी स्त्री दिखाई देती है, वह सोचता है, कहीं उसकी माँ तो नहीं है ?
वह नदियों, नालों, पहाड़ों और पठारों को पार करता हुआ सरहद पर पहुँचता है और देखता है कि गोलियों की तड़तड़ाहट से पूरी सीमा आक्रांत है | चारों ओर धाँय-धाँय कि आवाज़ सुनाई दे रही है | युद्ध जैसा दृश्य उपस्थित हो गया है |

                                          
                                        (2)
अंसू की माँ अचानक बीमार पड़ गई | वह रात में स्वप्न देखती है कि अंसू सरहद पर शत्रुओं से घिरा हुआ है | वह कभी शत्रुओं को पीछे कर देता है और कभी स्वयं ही पीछे हो जाता है | वह जब शत्रुओं को पीछे ढकेलता है, तो माँ को खुशी होती है, और जब वह हारता हुआ दिखलाई देता है तो माँ के आँखों से आसुओं की दो बूंदे गिर पड़ती है | जैसे ही उसका स्वप्न टूटता है, वह वैसे ही परेशान होने लगती है | उसे वास्तविक ज़िंदगी से भय लगता है | वह काल्पनिक संसार में जीना चाहती है क्योंकि, मनुष्य का स्वभाव है कि जो वस्तु उसे वास्तविक जगत में प्राप्त नही होती है | उसे वह कल्पना लोक में प्राप्त करना चाहता है |
        
             अंसू सरहद पर वीरोचित युद्ध कर रहा है | वहाँ उसे उसकी माँ याद नहीं आती है | क्योंकि वसुंधरा वीरों के द्वारा उपभोग की जाती है | जो सैनिक वसुन्धरा की सुरक्षा कर रहा है, वह माँ की रक्षा से बढ़कर है | अंसू की माँ की बीमारी बढ़ती गई | अब वह दूसरों के सहायता के बगैर चल नहीं पाती | उसकी अंसू के घर वापस आने की आशा निराशा मे परिणत होती जा रही है | जिस प्रकार प्रकाश का अभाव अंधकार होता है , उसी प्रकार आशा का अभाव निराशा होती है | निराश व्यक्ति हर परिस्थिति को निषेधात्मक ढंग से देखता है और समझता है | उसकी नकारात्मक सोच उसे पतन के गड्ढे में गिरा देती है | वह ऐसी काली गुफा में प्रवेश करता है, जिसमे कभी प्रकाश की एक भी किरण का प्रवेश न हुआ हो और घने अंधकार का साम्राज्य हो | आज आँसू की माँ निराशा के घने तमस में डूब गई है | जिसे अंसू के बगैर कौन दूर कर सकता है |
       
               माँ को अंसू के घर वापसी की आशा धूमिल पड़ती जा रही है | अंसू के बिना उसे कीचड़ से कौन निकाल सकता है ? ऐसे अनेक अनुत्तरित प्रश्न उसके अन्तर्मन में समुद्र में ज्वार की तरह उठ रहे हैं और पुन: उसी में विलीन होते जा रहे हैं |
   
                                       


                                        (3)
अंसू की माँ रात्रि में दु:स्वप्न देखती है कि उसका पुत्र आतंकियो से घिरा हुआ है | आतंकवादियों का मकसद बेगुनाह लोगों को सताना अपमानित करना और अंत में जीवन लीला को समाप्त कर देना हैं | सारे विश्व में आतंकवाद और आतंकियो को साम्राज्य हो यह इनका जीवन – दर्शन है | इनका जीवन – दर्शन विध्वंसात्मक और नकारात्मक होते हैं | निर्दोष जनों को पीड़ा देकर स्वयं सुखी रहना उनका जीवन दर्शन होता है |
                  अंसू की दर्दनाक मौत आतंकियों द्वारा कर दी गई है | दैनिक समाचार पत्र ने लिखा – अंसू नायक सैनिक आतंकियों से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गया |” भारत सरकार द्वारा उसका शव उसके गाँव, लाया गया | उसके गाँव में कोहराम मचा हुआ है |
                  अंसू की माँ घर थी कोठरी में उसके आगमन की बात देख रही है उसकी कोठरी में एक दीपक टिमटिमा रहा है | वह बाहर देखती है की गाँव में शोर सुनाई दे रहा है | उसे किसी व्यक्ति के मुंह से अंसू का नाम सुनाई दिया | वह कह रहा है – “अंसू  अपनी माँ का एकलौता संतान था |” वह महावीर था | सरहद पर दुश्मनों से युद्ध करता हुआ वो वीरगति को प्राप्त हो गया | अंसू का नाम सुनते ही उसकी माँ चौककर के चारपायी पर बैठ जाती है | उसे चारों ओर घुप अँधेरा दिखलाई देता है | उसकी आँखों के सामने एक काला परदा सा दिखाई देता है | वह अचानक काँपने लगती है | किसी व्यक्ति ने उसके कान में कहा – “दादी ! तुम्हारा बेटा अंसू इस संसार में नही रहा |” माँ ने कहा – “नहीं, ऐसा नहीं हो सकता | हमारा बेटा अंसू नही रहा | तुम झूठ बोलते हो | मैं उसे एक बार देखना चाहती हूँ | मैं उसे देखे बिना मर नहीं सकती हूँ | वह उसे चारों दिशाओं में खोजती है | किन्तु वह दिखाई नही देता | वह कहती है कि हे राम ! अंसू को बिना देखे उसकी आत्मा कई जन्मों तक भटकती रहेगी |
                     सैनिकों द्वारा अंसू का शव उसकी माँ के समक्ष लाया जाता है | वह उसके शव को बड़े ध्यान से देखती है , उस पर विलाप करती है और आंसुओं की दो बूंदे उसके शव पर टपक पड़ती है |

                                      समाप्त