कुछ पंक्तियां
नफरतों के शहर में
चालाकियों के डेरे हैं,
यहाँ वो लोग रहते
हैं...जो तेरे मुंह पर तेरे, मेरे मुंह पर मेरे हैं।
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यहां दरख्तों साए में धूप
खिलती है,
चलो यहां से चले उम्र भर के लिए।।
कहा तो तय था चिराग हर एक
घर के लिए,
कहां चिराग़ मयस्सर नहीं
शहर के लिए।।
अज्ञान में सफाई है और हिम्मत है, उसके दिल और
जुबान में पर्दा नहीं होता, ना कथनी और करनी में। क्या यह अफसोस की बात नहीं,
ज्ञान अज्ञान के आगे सिर झुकाए?
अन्याय को बढ़ाने वाले कम अन्यायी नहीं।
आत्म सम्मान की
रक्षा, हमारा सबसे पहला धर्म है।
इंसान सब हैं पर
इंसानियत विरलों में मिलती है।
क्रांति बैठे-ठालों का खेल नहीं है। वह नई
सभ्यता को जन्म देती है।
ख्याति-प्रेम वह प्यास है जो कभी नहीं
बुझती। वह अगस्त ऋषि की भांति सागर को पीकर भी शांत नहीं होती।
जब दूसरों के पांवों तले अपनी गर्दन दबी हुई
हो, तो उन पांवों को सहलाने में ही कुशल है।
जवानी जोश है, बल है, साहस है, दया है,
आत्मविश्वास है, गौरव है और वह सब कुछ है जो जीवन को पवित्र, उज्ज्वल और पूर्ण बना
देता है।
जिस साहित्य से हमारी सुरुचि न जागे,
आध्यात्मिक और मानसिक तृप्ति न मिले, हममें गति और शक्ति न पैदा हो, हमारा सौंदर्य
प्रेम न जागृत हो, जो हममें संकल्प और कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने की सच्ची
दृढ़ता न उत्पन्न करें, वह हमारे लिए बेकार है वह साहित्य कहलाने का अधिकारी नहीं
है।
जो शिक्षा हमें
निर्बलों को सताने के लिए तैयार करे, जो हमें धरती और धन का ग़ुलाम बनाए, जो हमें
भोग-विलास में डुबाए, जो हमें दूसरों का ख़ून पीकर मोटा होने का इच्छुक बनाए, वह
शिक्षा नहीं भ्रष्टता है।
पहाड़ों की कंदराओं में बैठकर तप कर लेना सहज है, किन्तु परिवार में रहकर धीरज
बनाये रखना सबके वश की बात नहीं।******
मनुष्य का मन और मस्तिष्क पर भय का जितना प्रभाव होता है, उतना और किसी शक्ति
का नहीं। प्रेम, चिंता, हानि यह सब मन को अवश्य दुखित करते हैं, पर यह हवा के
हल्के झोंके हैं और भय प्रचंड आधी है।
लिखते तो वह लोग
हैं, जिनके अंदर कुछ दर्द है, अनुराग है, लगन है, विचार है। जिन्होंने धन और भोग
विलास को जीवन का लक्ष्य बना लिया, वो क्या लिखेंगे?
हिम्मत और हौसला मुश्किल को आसान कर सकते हैं, आंधी और
तूफ़ान से बचा सकते हैं, मगर चेहरे को खिला सकना उनके सामर्थ्य से बाहर है।
जयशंकर प्रसाद
कभी कभी मौन रह जान बुरी बात नहीं है।
संसार ही युद्ध
क्षेत्र है, इसमें पराजित होकर शस्त्र अर्पण करके जीने से क्या लाभ?
पुरुष क्रूरता है तो स्त्री करुणा है।
संदेह के गर्त में गिरने से पहले विवेक का अवलंबन ले लो।
54. जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है प्रसन्नता।
यह जिसने हासिल कर ली, उसका जीवन सार्थक हो गया।
जीना भी एक प्रकार का कला है
बल्कि ये कला ही नहीं ये तपस्या भी है
हजारी प्रसाद द्विवेदी
दुनिया बड़ी भुलक्कड़ है
केवल उतना ही याद रखती है,
जितने से उसका स्वार्थ सधता है।
हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
लोग केवल सत्य को पाने के लिए
देर तक नहीं टिके रह सकते।
उन्हें धन चाहिए, मान चाहिए,
यश चाहिए, कीर्ति चाहिए.
हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
मनुष्य की पशुता को
जितनी बार भी काट दो,
वह मरना नहीं जानती।
हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
वे लोग ही विचार में निर्भीक हुआ करते हैं
जिन लोगों के अन्दर आचरण की दृढ़ता होती है।
हजारीप्रसाद द्विवेदी
अतीत ही वर्तमान को जन्म देता है।
उसके दोष-गुण से वर्तमान प्रभावित रहता है।
Hazari Prasad Dwivedi
जहाँ तक स्वार्थ का संबंध है,
मनुष्य पशु ही तो है। अगर पशु
कहना कुछ कड़ा मालूम होता हो
तो उसे ‘बड़ा पशु’ कहिए।
पशु का स्वार्थ छोटा होता है
और मनुष्य का बड़ा।
यह विचार कि स्त्री ही
स्त्री को समझ सकती है और
पुरुष स्त्री को नहीं समझ सकता,
किसी बहके दिमाग़ की कल्पना-मात्र है।
हजारी प्रसाद द्विवेदी