वाणी वन्दना
अंतरात्मा की पुकार
श्री राम बरन त्रिपाठी के मुक्तक काव्य में संग्रहित
मातु शारदे ! वरदे
वीणा को कुछ समय के लिए एक ओर धर दे ,
मातु शारदे! वरदे!
कृषकों के कुदाल खुरपी पर ,
अम्ब फेर अपने सशक्त कर ,
श्रमिक वर्ग में नवल तेज भर ,
फिर सुसिप्त उनकी अम्बे हर।।
रग-रग में जन -जन में मात अनुपम
स्वर भर दें । मातु शारदे! वरदे!...
चपल अंगुलियां फेर तार पर ।
तन्तुवाय में नवल शक्ति भर दें,
नव शिशुओं में नव विकास कर ,
ध्वनि अम्ब कर चक्र सुघर घर।।
वीणा नवल बजे भारत में कुछ ऐसा कर दें।।
मातु शारदे! वरदे!...
भारत के वीरों में जाकर मां सास्त्तास्तों में
प्रलयंकर भर दें ओज अपूर्व प्रखर तर ,
जिससे कांपे अरि दल थर-थर,
दिग्विजयी निज पुत्रों को पावन वर दें ,
मातु शारदे! वरदे!