।।नान्दीवाक्।।
यमदग्नि की कर्मस्थली, आलम की केलिन से गुंजित, जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी की चकाचक धरती, गिरिजा दत्त शुक्ल 'गिरीश' जैसे विद्वद् वरेण की शैली से ओतप्रोत तथा प्रो0 गंगा नारायण त्रिपाठी की जन्मस्थली सुजानों की धरती सुजानगंज को आलोकित करने वाले पूज्यपाद कविभूषण श्रद्धेय श्री रामबरन त्रिपाठी द्वारा रचित अन्तरात्मा की पुकार नामक यह मुक्तावली कोमल पदावली युक्त तथा सह्र्दयों के मन को मुग्ध करती है।
जिस प्रकार वृक्ष के जीवन चक्र में मूल से स्कंध, स्कंध से शाखाएं ,शाखाओं से वृत्त, वृत्त से पल्लव, पल्लवों से पुष्प, तथा पुष्पों से फलों का उद्भव होता है और फलों के अमृतोपम रस से ही समूचे वृक्ष के जीवन चक्र की सार्थकता सिद्ध होती है। ठीक उसी प्रकार मनुष्य अपने कर्मेंद्रिय तथा ज्ञानेंद्रिय के माध्यम से शरीर, मन, प्राण, इंद्रिय, जन्म, मरण, सृष्टि, प्रलय, आदि गहन विषयों का हस्तामलकवत् ज्ञान प्राप्त कर अपनी अन्तरात्मा के द्वारा प्राप्त तत्त्वों को समाज हेतु प्रस्तुत करता है। तो उसके जीवन की सार्थकता सिद्ध होती है। इसी लोकहित की भावना से प्रेरित होकर कवि के द्वारा संकल्पित अंतरात्मा की पुकार नामक या मुक्तक काव्य सभी सुधीजनों के लिए प्रस्तुत है।
कवि ने समाज में फैली बुराइयों को न दूर कर पाने पर बड़ा ही मार्मिक मुक्तक प्रस्तुत करते हुए कहा कि-
जलाए सहस्त्रों विविध दीप हमने
अंधेरा धरा से मिटा पर न पाए।
रही साध ऐसी की जग जगमगाये
नहीं किंतु दीपक तले देख पाए।।
गोपाल दास नीरज की पंक्ति जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना की आदर्शवादिता को दूर कर कवि ने अपने मुक्तक की माध्यम से वास्तविकता का भान कराया।
इस विलक्षण सारस्वत अवदानार्थ मेैं पूज्य पितामह कवि हृदय आपका हार्दिक अभिनंदन करता हूंँ तथा आपकी इन पंक्तियों के साथ आशीर्वाद का आकांक्षी हूंँ।
यह उद्द्घोष कृष्ण का युग युग
जन-जन में उल्लास भरेगा।
क्या चिंतन क्या उक्ति हमारी
यह निर्णय इतिहास करेगा।।
विनयावनत्
डॉ0 विनय कुमार त्रिपाठी
प्राचार्य
श्री गौरीशंकर संस्कृत महाविद्यालय सुजानगंज जौनपुर