जयशंकर प्रसाद जी की प्रसिद्ध पंक्तियां-
1. ’’तुम भूल गए पुरूषत्व मोह में, कुछ सत्ता है नारी की।’’
2. ’औरों को हँसते देख मनु, हँसो और सुख पाओ।
अपने सुख को विस्तृत कर लो, सबको सुखी बनाओ।’’
3. ’’नील परिधान बीच सुकुमार, खुल रहा मृदुल अधखुला अंग।
खिला हो ज्यों बिजली का फूल, मेघवन बीच गुलाबी रंग।।’’
4. ’’बीती विभाबरी जाग री, अंबर पनघट में डुबो रही
तारा घट उषा नगरी।।’’
5. ’’बाँधा था विधु को किसने, इन काली जंजीरों से।
मणिवाले फणियों का मुख, क्यों भरा हुआ है हीरो से।’’
6. ’’जो घनीभूत पीङा थी मस्तक में, स्मृति सी छाई।
दुर्दिन में आँसु बनकर, वह आज बरसने आई।।
7. ’’दोनों पथिक चले है कब से ऊँचे-ऊँचे, चढ़ते-बढ़ते’’
श्रद्धा आगे मनु पीछे थे, साहस उत्साह से बढ़ते-बढ़ते’’
8. ’’हिमगिरी के उंतुग शिखर पर, बैठ शिला की शीतल छांह।
एक पुरुष भीगे नयनों से, देख रहा था प्रलय प्रवाह।’’
9. ’’ज्ञान दूर कुछ क्रिया भिन्न है, इच्छा क्यों हो पूरी मन की।
एक दूसरे से न मिल सके, यह विडम्बना है जीवन की।।’’
10. ’’उधर गजरती सिंधु लहरियाँ, कुटिल काल के जालों सी।
चली आ रही फेन उगलती, फन फैलाए व्यालों सी।’’
11. ’’प्रकृति के यौवन का शृंगार, न करेंगे कभी बासी फूल।’’
12. ’’ओ चिन्ता की पहली रेखा, अरी विश्व वन की व्याली।’’
13. ’’नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पदतल में।
पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में।।’’
14. ’’रो-रोकर, सिसक-सिसक कर, कहता मैं करूणा कहानी।
तुम सुमन नोचते सुनते, करते जानी अनजानी।’’
15. ’’इस करूण कलित हृदय में, अब विकल रागिनी बजती।
क्यों हाहाकार स्वरों में, वंदना असीम गरजती।।’
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