सोमवार, 3 अप्रैल 2023

भारतीय काव्य शास्त्र

क्रमशः- प्रश्न संख्या 25 से आगे 

26 भारतीय काव्य शास्त्र के अनुसार काव्य के तत्व है - 
1 शब्द और अर्थ, 2 रस, 3 गुण, 4 अलंकार, 5 दोष, रीतिय
27 आधुनिक कवियों ने काव्य के प्रयोजन में क्या विचार दिए - 
ज्ञान विस्तार, मनोरंजन, लोक मंगल, उपदेश
28 खण्ड काव्य में सर्गखण्ड होते है - 
सात से कम
29 शैली के आधार पर काव्य भेद है - 
गद्य, पद्य, चम्पू
30 दृश्य काव्य के भेद है - 
रूपक और उप रूपक

31 महाकाव्य का प्रधान रस होता है - 
वीर, शृंगार या शांत रस
32 महाकाव्य के प्रारंभ में होता है - 
मंगलाचरण या इष्टदेव की पूजा
33 रूपक के भेद है - 
नाटक, प्रकरण, भाण, प्रहसन, व्यायोग, समवकार, वीथि, ईहामृग, अंक
34 महाकाव्य में खण्ड या सर्ग होते है - 
आठ और अधिक
35 महाकाव्य के एक सर्ग में एक छंद का प्रयोग होता है। इसका परिवर्तन किया जा सकता है - 
सर्ग के अंत में।

36 मुक्तक काव्य है - एकांकी सदृश्यों को चमत्कृत करने में समर्थ पद्य
37 प्रबंध काव्य वनस्थली है तो मुक्तक काव्य गुलदस्ता है। यह उक्ति किसने कही - 
आचार्य रामचंद्र शुल्क ने
38 मुक्तककार के लक्षण होते है - 
मार्मिकता, कल्पना प्रवण, व्यंग्य प्रयोग, कोमलता, सरलता, नाद सौंदर्य
39 मुक्तक के भेद है - 
रस मुक्तक, सुक्ति मुक्तक
40 काव्य के गुण है - 
काव्य के रचनात्मक स्वरूप का उन्नयन कर रस को उत्कर्ष प्रदान करने की क्षमता

41 भरत और दण्डी के अनुसार काव्य के गुण के भेद है
- श्लेष, प्रसाद, समता, समाधि, माधुर्य, ओज, पदसुमारता, अर्थव्यक्ति, उदारता व कांति
42 आचार्य मम्मट ने काव्य गुण बताए - 
माधुर्य, ओज और प्रसाद
43 माधुर्य गुण में वर्जन है - ट, ठ, ड, ढ एवं समासयुक्त रचना
44 काव्य दोष वह तत्व है जो रस की हानि करता है। परिभाषा है - 
आचार्य विश्वनाथ की।
45 मम्मट ने काव्य दोष को वर्गीकृत किया - 
शब्द, अर्थ व रस दोष में

46 श्रुति कटुत्व दोष है - 
जहां परूश वर्णो का प्रयोग होता है।
47 परूष वर्णो का प्रयोग कहां वर्जित है - 
शृंगार, करूण तथा कोमल भाव की अभिव्यंजना में
48 परूष वर्ग किस अलंकार में वर्जित नहीं है - यमक आदि में
49 परूष वर्ण कब गुण बन जाते है - 
वीर, रोद्र और कठोर भाव में
50 श्रुतिकटुत्व दोष किस वर्ग में आता है - 
शब्द दोष में

51 काव्य में लोक व्यवहार में प्रयुक्त शब्दों का प्रयोग दोष है - 
ग्राम्यत्व
52 अप्रीतत्व दोष कहलाता है - 
अप्रचलित पारिभाषिक शब्द का प्रयोग। यह एक शास्त्र में प्रसिध्द होता है, लोक में अप्रसिध्द होता है।
53 शब्द का अर्थ बड़ी खींचतान करने पर समझ में आता है उस दोष को कहा जाता है - 
क्लिष्टतव
54 वेद नखत ग्रह जोरी अरघ करि सोई बनत अब खात...। में दोष है - 
क्लिष्टत्व
55 वाक्य में यथा स्थान क्रम पूर्वक पदो का न होना दोष है - 
अक्रमत्व

56 अक्रमत्व का उदाहरण है - 
सीता जू रघुनाथ को अमल कमल की माल, पहरायी जनु सबन की
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