सिन्दूर की एक डिबिया
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जून का माह | सूर्यनारायण रश्मियों के द्वारा सम्पूर्ण भूलोक को संतप्त कर रहे है | प्राणलेवा गर्मी से भयभीत होकर प्राणी जगत किसी छाया की शरण में जीवन निर्वहन कर रहे हैं | विन्ध्य पर्वत माला के इर्द गिर्द आदिवासी जनों की एक बस्ती है | इनका रहन – सहन निम्न स्तर का है | घटिया भोजन , मलीन वस्त्र, टूटी फूटी झोपड़ियाँ एवम् निहायत अश्लील गाली – गलौज में इनका जीवन व्यतीत होता है | इसी वस्ती में एक आदिवासी निवास करता है , जिसका नाम चैतू है | चैत्र मास में जन्म लेने के कारण इसका नाम चैतू पड़ गया है | इसकी पत्नी का नाम दु:खिया और बेटी का नाम “गौरी” है | लोग उसे गौरी के नाम से पुकारते हैं | जैसा उसका नाम , उसी के अनुरूप उसका रूप लावण्य | चंद्रमा की उपमा देना उसके रूप – सौन्दर्य का अनादर करता है | वह निष्कलंक है , जबकि चाँद कलंकित है उसके मुखमण्डल पर तपे हुए स्वर्ण की लालिमा एवम् तपस्वी जैसा तेज़ है | उसके अधरों पर अहर्निशि क्रीडा करती हुई मधुर मुस्कान विराजमान रहती है | वह विकलांग है , किन्तु विकलांगता उसके रूप माधुर्य में किंचित् अभाव पैदा नहीं करती है | क्योंकि गुणों के समूह में एक दुर्गुण वैसे ही छिप जाता है , जैसे , चाँद में एक एक धब्बा | गौरी का पिता उससे भिक्षा मँगवाता है | शायद इसलिए कि उसकी विकलांगता पर करूणाद्र होकर एवम् सौन्दर्य पर मुग्ध होकर राहगीर एक दो पैसे अवश्य दे देगा | वह भोपाल रेलवे क्रासिंग पर बैठकर राहगीरों से एक दो पैसे मांगती है | गौरी के रूप सौन्दर्य पर मुग्ध होकर एक तरूण ने उससे प्रश्न किया – “ सुंदरी , क्या वह भी तुम्हारे साथ बैठकर भिक्षा मांग सकता है ? तरूण की बातों को सुनकर उसने जवाब दिया – “ नहीं, तरूण नहीं | तुम राजकुमार हो , तुम कुलीन खानदान के सुपुत्र हो | भिक्षावृति तुम्हारे लिए उपयुक्त नहीं है | यह भिखारियों, निर्धनों , विकलांगों, अनाथों के लिए बनायी गई है | तुम नवयुवक हो, सुंदर हो, तुम्हारा रूप – लावण्य संभ्रांत परिवार का परिचायक है | यह अधम काल तुम्हारे लिए अशोभनीय है | तरूण ने गौरी से पुन: पुन: आग्रह किया , उसने बेबश होकर मौन स्वीकृति दे दी | तरूण गौरी के पास बैठकर राहगीरों से एक दो पैसे मांगता है | पथिक जनों से उसे जो पैसे प्राप्त होते है, उसे गौरी को देता है | यह क्रम कई दिनों तक चलता रहा | एक दिन की घटना ने गौरी को स्तब्ध कर दिया | तरूण ने गौरी से शादी का प्रस्ताव कर दिया | उसने तरूण से कहा – “ तुम एक राजपुत्र और मैं एक साधारण भिखारी की पुत्री | तुम्हारी समाज में मान – मर्यादा बढ़ी – चढ़ी है और मेरी कोई इज्जत नही है | तुम्हारी शादी और मेरे साथ | नहीं , राजपुत्र , नहीं | कदापि नहीं |
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गौरी की शादी उसके बाप ने किसी दिव्यांग के साथ सुनिश्चित कर दिया है | गौरी दिव्यांग के बारे में स्वप्न देखती है – “ वह कितना सुन्दर होगा | उसके प्रत्येक अंग दिव्य होंगे | तभी तो लोग उसे दिव्यांग कहते हैं | वह भावी पति की परिकल्पना में खोई रहती है | वह अब भिक्षा भि नहीं माँगती है |
राजकुमार की शादी किसी अप्रतिम सुन्दरी राजकुमारी से सुनिश्चित हो चुकी है | राजमहल विद्युत बल्बों की रोशनी में नहाया हुआ है | राजकुमारी सर्वांग सुन्दरी है ब्रह्मा के द्वारा रची गई सृष्टि का अद्वितीय कृति है | ब्रह्मा जिसके रूप माधुरी पर स्वयं मुग्ध है |
राजदूतों द्वारा राजकुमार को विदित हुआ कि महाराजा ने उसकी शादी राजकुमारी प्रिया के संग सुनिश्चित कर दिया है | राजदूतों से शादी की बात सुनकर के राजकुमार के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई | वह बेसुध होकर गिर पड़ा | उसने अन्तर्मन में विचार किया – “ गौरी जैसी सुन्दरी लड़की त्रिलोक में अभी तक पैदा ही नहीं हुई है | गौरी के अनिंद्य सौन्दर्य की उपमा राजकुमारी से करना आत्म प्रवंचना है | गौरी रूप मौधुर्य की साक्षात् देवी है | यद्यपि गौरी विकलांग है , किन्तु कहा गया है कि प्रेमी जनों को अपने प्रियजनों में किंचित् भी दुर्गुण दिखलाई नहीं देता है | राजकुमार बड़ी तीव्रता से गौरी के पास जाता हैं और उससे प्रणय-निवेदन करता है | गौरी मौन स्वीकृति दे देती है | महाराजा को जब यह समाचार मिला तो , उन्होने राजदूतों से राजकुमार को बुलवाया और समझाने का प्रयास किया | राजा ने राजकुमार से कहा – “ तुम एक राजपुत्र हो | एक विकलांग लड़की के संग शादी करना राज घराने का अपमान है | मेरा खानदान कलंकित होगा | तरूण राजकुमार ने उत्तर दिया – “महाराज , आत्मज्ञान और आत्मसुख से बढ़कर के मान – मर्यादा नहीं होती है | मनुष्य की मान – मर्यादा क्षण भंगुर है और आत्मज्ञान व आत्मसुख शाश्वत हैं | अत: ज्ञानीजन क्षणिक मान – मर्यादा हेतु आत्मसुख का परित्याग नहीं करते हैं | महाराजा ने मौन स्वीकृति प्रदान कर दी |
तत्पश्चात् राजकुमार की शादी का मुहूर्त सुनिश्चित हो गया | जब दिव्यांग पुरूष को पता चला कि गौरी की शादी राजकुमार के संग सुनिश्चित हो चुकी है , तब उसके अन्तर्मन में बड़ी आत्मग्लानि उत्पन्न हुई , किन्तु विधाता का विधान बड़ा ही कठोर होता है | यह जानकर उसने दो पैसे से “सिंदूर की एक डिबिया” लेकर राजमहल जा पहुंचा और गौरी के हाथों में देते हुए कहा –“ गौरी ,
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तुम्हारा दिव्यांग पति तुम्हारे समक्ष खड़ा है | इसे स्वीकार करो | मैं निर्धन , असहाय और असमर्थ हूँ | इसीलिए तुम ने मेरे संग शादी से इनकार करके एक धनवान के साथ रहना बेहतर समझा ठीक है | ईश्वर की इच्छा सर्वोपरि होती है | मनुष्य उसके सामने झुक जाता है | गौरी तुम सौभाग्यवती हुई और तुम्हारा स्वप्नों का दिव्यांग कुँवारा | दिव्यांग की बातों को सुनकर गौरी ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया – “ दिव्यांग ! राजकुमार तरूण ने मुझे पहले प्रेम किया | अत: उससे मैंने शादी करना कर्तव्य समझा | दिव्यांग तुम्हारे द्वारा प्रदान की गई पवित्र “सिंदूर की डिबिया” को सदैव अपने पास सहेज कर रखूंगी और जीवनपर्यंत इसकी सुरक्षा करूंगी | क्योंकि यह मेरा सुहाग है | यह कहकर के गौरी चुप हो गई |
समाप्त
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