बूढ़ी दादी*
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बूढ़ी दादी का नाम जुबान पर आते ही ऐसी बुढिया का चित्र आँखों के सामने खड़ा हो जाता है जो काया से अति दुर्बल , आँखों में अदृश्यता , बालो में सफेदी, गालों में पोपला मुंह में दंतविहीनता और चमड़ी पर झुर्रियांवाली कोई स्त्री होगी | प्राचीन समय की बात है | एक गाँव में बुढ़िया रहा करती थी | जिसे लोग ‘बूढ़ी दादी’ के नाम से पुकारते थे | उसके परिवार में बेटे – बेटियाँ , नाती – पोतियाँ , युवक – युवतियाँ थी | घर के छोटे बच्चे दादी के ईद – गिर्द मँडराते थे | एक बच्चा दादी से कहता है – “ बूढ़ी दादी , तू क्यों नहीं बोलती हो ? तू सदैव क्या सोचती रहती हो ? क्या तुझे कोई बीमारी ने पकड़ रखा है ? बच्चे के प्रश्न को सुनकर के दादी कुछ बोलना चाहती है , किन्तु यह सोचकर के चुप रह जाती है कि उसका छोटा बेटा कही सुन लिया तो उसकी खैर नहीं | अत: बूढ़ी दादी केवल कुछ नही ‘बच्चा’ कहकर के प्रशांत हो जाती और न जाने किस संसार में खो जाती |
बूढ़ी दादी का छोटा बेटा आबकारी विभाग में बड़ा बाबू के पद पर कार्यरत है | वह प्रकृति से विगड़ैल तुनुकमिज़ाज़ी और अहंकारी है | वह मनमौजी स्वभाव के कारण किसी भी व्यक्ति की बातों पर तवज्जो नही देती है | उसे जो बात अच्छी लगती है , उसे किसी भी कीमत पर पूरा कर लेता है | वह बूढ़ी दादी की हर बात को नज़रअंदाज कर देता है | उसकी कत्तई देखभाल नही करता है | उसने बूढ़ी दादी का मज़ाक उठाते हुए कहा “ अरे , बूढ़ी दादी , तू अब क्यों ज़िंदा हों ? भगवान से दुवा करो कि वह तुम्हें जल्द से जल्द इस दुनिया से बुला ले | “बूढ़ी दादी ने उत्तर दिया – “बेटा , जीना – मरना मनुष्य के हाथों में नहीं है | मनुष्य ईश्वर के मुख का ग्रास होता है, जिसका आधा भाग उसके मुँह के भीतर और आधा भाग बाहर होता है | वह संसार को दिव्य नेत्रों से देखता है किन्तु संसारी प्राणी अपने चर्म चक्षुओं से उसे देख नही पाते है | यह ही संसार का अद्भुत रहस्य है | बड़े बाबू के बुरे स्वभाव से सारे कर्मचारी निहायत ऊब चुके हैं |
एक दिन की घटना है | बड़े बाबू ने अपने ‘बॉस’ की प्रशंसा में कुछ अनमोल मोतियाँ जड़ दिए | उन्होने अपने ‘बॉस’ से कहा – “सर , जिसदिन आप का चरण कमल मेरे कार्यालय में पड़ा – “ उस दिन से आवकारी विभाग की आमदनी बढ़ गई है | आप जैसा लोकप्रिय ‘बॉस’ अभी तक इस विभाग में
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न आया और न ही भविष्य में आएगा | आप जैसा प्रशासनिक अधिकारी मैंने अपने जीवन में न देखा और न सुना ही | मेरा कार्यालय आप जैसे ‘बॉस’ पाकर के कृतार्थ हो गया है | ‘बॉस’ ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया – “ बड़े बाबू, मै जिस विभाग में जाता हूँ , वहाँ भी आमदनी दोगुनी नही , चौगुनी बढ़ जाती है | अभी तक मेरा इस विभाग में आए हुए दस दिन ही हुए है , एक वर्ष पूर्ण होते ही कार्यालय का कायाकल्प कर दूंगा |
बड़े बाबू ने अपने ‘बॉस’ को खुश करने हुते अपने आवास पर एक शानदार पार्टी का आयोजन किया है | उन्होने ‘बॉस’ से कहा – “ ‘बॉस’ , मैंने अपने आवास पर एक शानदार पार्टी का आयोजन किया है | जिसमें आप सपरिवार सादर आमंत्रित है | ‘बॉस’ ने मौन स्वीकृति प्रदान कर दी | बड़े बाबू का बँगला विद्युत बल्बों की रंग बिरंगी रोशनी से नहाया हुआ है | मेहमानों हेतु बी॰ आई॰ पी॰ कुर्सियाँ सुशोभित हो रही है | नौकर – नौकरानियाँ इधर – उधर दौड़ते हुए दिखाई दे रहे है | विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाए गए है | ‘बॉस’ को कोई बात बुरी न लगे, इस बात का पूरा ख्याल रखा गया है | ‘बास’ के मनोरंजन हेतु नवयौवना नर्तकियों को बुलाया गया है | मधुर वाद्ययंत्रों से पूरा परिसर संगीतमय और आह्लादमय हो गया है |
बड़े बाबू ने बूढ़ी दादी से कहा – दादी , ध्यानपूर्वक सुनो | आज मेरे बंगले पर एक शानदार पार्टी का आयोजन किया गया है | जिसमें नगर के सम्भ्रात जन आमंत्रित किए गए है | तुम आज राजू की मम्मी की साड़ी पहनना | और सुनो , अपने कमरे से बाहर नहीं निकालना | ‘बॉस’ के आगमन पर अपना पोपला मुंह मत दिखाना | यदि ‘बॉस’ मेरे घर से नाराज होकर चले गए तो , तुम्हारी खैर नहीं होगी | यदि बॉस प्रसन्न होकर जाएंगे तो , मेरा प्रमोशन हो जाएगा | मै बड़ा बाबू को जगह ‘बड़ा साहब’ बन जाऊंगा |
‘बॉस’ के आगमन पर नवयुवतियाँ उनकी आरती प्रज्वलित दीपों से उतारती हैं और मांगलिक गीत गाती हैं | नवयुवतियाँ आकर्षक नृत्य के द्वारा ‘बास’ का स्वागत करती है | विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन ‘बॉस’ के सामने परोसे गए हैं |
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‘बॉस’ ठहाका लगाते हुए व्यंजनो का आस्वाद ले रहे हैं | चारों दिशाओं में खुशनुमा माहोल है | बूढ़ी दादी अपने तंग कमरे में खामोश पड़ी हुई है | उसे इस बात की आशंका है कि कही उसके कारण बड़े बाबू का प्रमोशन न हो पाए | अत: चुपचाप रहना ही अच्छा समझा | बड़े बाबू का बंगला किसी महाराजा के भव्य महल को भी मात कर रहा था | आधी रात व्यतीत हो चुकी है किन्तु बूढ़ी दादी के मुंह में एक दाना मयस्सर नहीं हुआ | वह व्यंजनों के स्वाद में खो जाती है किन्तु भूख की आग स्वाद से और प्रज्वलित हो जाती है | सारी दबी हुई इच्छाएँ उभरकर स्वाद इंद्रिय पर केन्द्रीभूत हो जाती है | आज बूढ़ी दादी के लिए सारा संसार व्यर्थ नज़र आ रहा है | उसे बड़े बाबू पर गुस्सा आता है कि तू ने बूढ़ी दादी को ज़िंदा क्यों छोड़ दिया ? उसे मार क्यों नही डाला ? हे भगवान ! अब जिंदा क्यों रखे हो | अब और अपमान मुझसे सहन नहीं होता | हे भगवान ! यदि तू दीनदयाल है तो, मुझे अपने पास बुला ले | यह कहकर के बूढ़ी दादी अपनी आँखें बंद कर लेती है |
सुप्रभात का समय | सूर्यदेव पूर्वी दिशा में अपनी सारथि के संग विराजमान थे | विद्युत बल्बों की रोशनी मंद पड़ रही थी | बड़े बाबू निद्रामग्न थे | उनके छोटे बेटे ने आवाज दी “पिता जी , बूढ़ी दादी की आंखे बंद हो गई हैं | वे बोल भी नहीं रही हैं | बड़े बाबू घबडाहट में उठे और बूढ़ी दादी के पास गए और बोले – “दादी ..... दादी, बूढ़ी दादी को क्या हो गया ? उन्होने दादी की नाड़ी देखा , तो हतप्रभ हो गए | हे भगवान ! तूने क्या कर दिया | दादी ने मेरे बड़े साहब पद पर प्रमोशन नही देखी और प्रभु को प्यारी हो गई | ग्रामीण लोगो ने कहा – “ बूढ़ी दादी , बेचारी भूख से तड़पकर मर गई |
बड़े बाबू ने बूढ़ी दादी की अन्येष्टि क्रिया किया | उन्होंने दादी के त्रयोदशाह पर शानदार पार्टी का आयोजन किया | दस हजार लोगो ने स्वादिष्ट व्यञ्जन ग्रहण किए | मेहमानों ने बड़े बाबू की प्रशंसा के गीत गाए और बूढ़ी दादी को श्रद्धाञ्जलि अर्पित किए , किन्तु बूढ़ी दादी की आत्मा स्वादिष्ट व्यञ्जनों की मृगतृष्णा में आजीवन भटकती रही |
समाप्त
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